Kitne Aprasangik hai Dharm Granth
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Kitne Aprasangik hai Dharm Granth book
This book is author by Rakesh Nath and published by Vishv Books
धर्माचार्य अपने कथन, उपदेश और कार्यों की पुष्टि के लिए कदमकदम पर धर्मग्रंथों की दुहाई देते रहते हैं, जिस से लगता है कि हमारे जीवन में धर्मग्रंथों की न जाने कितनी सार्थकता या उपयोगिता है।
किंतु सदियों पूर्व रचित कथित धर्मग्रंथों की ऊलजलूल बातों का आज की बदली हुई परिस्थितियों में क्या औचित्य है? क्या आज के वैज्ञानिक युग में भी हम किसी बात पर खुले दिमाग से विचार नहीं कर सकते? प्रश्न यह भी है कि इन धर्मग्रंथों ने हमें आज तक क्या दिया है? क्या धर्मग्रंथों के उपदेशों या आदर्शों के अनुकरण पर हमारा जीवनयापन सहज होगा? क्या धर्मग्रंथों के बिना हमारा काम नहीं चल सकता?
ऐसे ही तमाम प्रश्नों के संदर्भ में तर्क एवं तथ्यपूर्ण विचारों का संकलन है प्रस्तुत पुस्तक ‘कितने अप्रासंगिक हैं धर्मग्रंथ’, जिसे पढ़ कर आप सहज ही यह सोचने पर विवश हो जाएंगे कि वास्तव में आज धर्मग्रंथों की कोई उपयोगिता है या नहीं?
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Author | Rakesh Nath |
No. of Pages | 325 |
Language | Hindi |
Book Cover | Paperback |
Size | Standard |
Publisher | Vishv Books |
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