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Dalit Veerangnaye evam Mukti ki Chah
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Dalit Veerangnaye evam Mukti ki Chah

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  • Category:Books on Dalit Literature
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Item Description

Dalit Veerangnaye evam Mukti ki Chah book

This book is author by Badri Narayan and published by Rajkamal Prakashan

भारत में सांस्कृतिक अभ्युदय की गवेषणा करने वाली यह पुस्तक उत्तर भारत में दलित-राजनीति के पन का अवलोकन करती है और बताती है कि 1857 की विद्रोही दलित वीरांगनाएँ, उत्तर प्रदेश में दलित-स्वाभिमान की प्रतीक कैसे बनीं और उनका उपयोग बहुजन समाजवादी पार्टी की नेत्री मायावती की छवि निखारने के लिए कैसे किया गया ! यह प[उसतक रेखांकित करती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दलितों की भूमिका से सम्बंधित मिथकों और स्मृतियों का उपयोग इधर राजनितिक गोलबंदी के लिए किस तरह किया जा रहा है ! इसमें वे कहानियां भी निहित हैं जो दलितों के बीच तृणमूल स्तर पर राजनितिक जागरूकता फ़ैलाने के लिए कही जा रही हैं ! व्यपार-शोध और अन्वेषण पर आधारित इस पुस्तक में इस बात का भी उल्लेख है कि किस तरह लोगों के बीच प्रचलित किस्सों को अपने मनमुताबिक मौखिक रूप से या पम्फलेट के रूप में फिर से रखा जा रहा है और किस प्रकार अपने राजनितिक हित-साधन के लिए प्रत्येक जाती के देवताओं, वीरों एवं अन्य सांस्कृतिक उपादानों को दिखाकर प्रतिमाओं, कैलेंडरों, पोस्टरों और स्मारकों के रूप में तब्दील कर दिया गा है ! इस पुस्तक में यह भी दर्शाया गया है कि कैसे बी.एस. पी. अपना जनाधार बढाने के लिए ऐतिहासिक सामग्रियों का निर्माण एवं पुनर्निर्माण करती है ! यह पुस्तक जमीनी सच्चाइयों एवं परोक्ष जानकारियों पर आधारित है, जिसमें लेखक राजनितिक गोलबंदी के लिए ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संसाधनों के इस्तेमाल का विरोध करता है !.


Additional Informations

Here are some more information related to Dalit Veerangnaye evam Mukti ki Chah having in our Books on Dalit Literature category list.


Author Badri Narayan
Editor Yugank Dheer
No. of Pages 188
Language Hindi
Book Cover Paperback
Size Standard
Publisher Rajkamal Prakashan

A Video about Product

Here is the informative video related to Dalit Veerangnaye evam Mukti ki Chah having in our Books on Dalit Literature category list. For more videos related to our products, you can watch on our Youtube channel Bahujan Store


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This book is author by Badri Narayan and published by Rajkamal Prakashan

भारत में सांस्कृतिक अभ्युदय की गवेषणा करने वाली यह पुस्तक उत्तर भारत में दलित-राजनीति के पन का अवलोकन करती है और बताती है कि 1857 की विद्रोही दलित वीरांगनाएँ, उत्तर प्रदेश में दलित-स्वाभिमान की प्रतीक कैसे बनीं और उनका उपयोग बहुजन समाजवादी पार्टी की नेत्री मायावती की छवि निखारने के लिए कैसे किया गया ! यह प[उसतक रेखांकित करती है कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में दलितों की भूमिका से सम्बंधित मिथकों और स्मृतियों का उपयोग इधर राजनितिक गोलबंदी के लिए किस तरह किया जा रहा है ! इसमें वे कहानियां भी निहित हैं जो दलितों के बीच तृणमूल स्तर पर राजनितिक जागरूकता फ़ैलाने के लिए कही जा रही हैं ! व्यपार-शोध और अन्वेषण पर आधारित इस पुस्तक में इस बात का भी उल्लेख है कि किस तरह लोगों के बीच प्रचलित किस्सों को अपने मनमुताबिक मौखिक रूप से या पम्फलेट के रूप में फिर से रखा जा रहा है और किस प्रकार अपने राजनितिक हित-साधन के लिए प्रत्येक जाती के देवताओं, वीरों एवं अन्य सांस्कृतिक उपादानों को दिखाकर प्रतिमाओं, कैलेंडरों, पोस्टरों और स्मारकों के रूप में तब्दील कर दिया गा है ! इस पुस्तक में यह भी दर्शाया गया है कि कैसे बी.एस. पी. अपना जनाधार बढाने के लिए ऐतिहासिक सामग्रियों का निर्माण एवं पुनर्निर्माण करती है ! यह पुस्तक जमीनी सच्चाइयों एवं परोक्ष जानकारियों पर आधारित है, जिसमें लेखक राजनितिक गोलबंदी के लिए ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक संसाधनों के इस्तेमाल का विरोध करता है !.

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